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टार्गेट हैं तो टार्गेट ओरिएंटेड जाब कीजिए

गोल से पहले
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व्यक्तित्व विकास से जुड़े जिन पहलुओं पर चर्चा शुरू हुई है, उसका अगला विषय है टार्गेट। कब कौन प्रबंधन या बास का टार्गेट बन जाय, कहना मुश्किल है। यहां टार्गेट का मतलब भविष्य के प्रति भय पैदा करने के अर्थ में है। यानी यदि आप बास या प्रबंधन के टार्गेट पर हैं तो आपके साथ कुछ भी हो सकता है। आपके हर काम में मीन-मेख निकालकर आपको सरेआम अपमानित किया जा सकता है। आप कितने भी काबिल हों, पर महत्वपूर्ण मसले पर आपसे विचार-विमर्श न कर आपकी उपेक्षा की जा सकती है। यहां तक कि वेतन बढ़ोत्तरी के दौरान आपकी काबलियत को दरकिनार कर आपसे नाकाबिल कर्मचारी को तरजीह दी जा सकती है, उसे प्रोन्नत किया जा सकता है। यह ऐसी दुनियावी बातें हैं, जिससे हर कोई कहीं न कहीं रूबरू होता है और इस मसले को लेकर सुबह, दोपहर, शाम, रात सब खराब करता है। सवाल उठता है कि क्या करना चाहिए?
व्यक्तित्व विकास से जुड़े इस महत्वपूर्ण पहलू पर आम तौर पर एक्सपर्ट सुझाव नहीं मिलते, क्योंकि टार्गेट पर आने की वजहें जुदा-जुदा परिस्थितियों में जुदा-जुदा होती हैं। कोई जाति के नाम पर टार्गेट बन जाता है। कोई स्वाभिमान को लेकर टार्गेट बन जाता है। किसी की विद्वता ही खटक जाती है। बास को देखते हड़बड़ा कर आप खड़े नहीं हुए कि टार्गेट पर आ गए। आपके नए कपड़े, नए वाहन भी आपको टार्गेट पर ला सकते हैं।
दरअसल व्यक्ति की बहुत सारी चीजें सार्वजनिक नहीं होतीं, व्यक्ति उन्हें सार्वजनिक कर भी नहीं सकता। 1999 की बात है। मेरे एक सीनियर साथी सिर्फ इसलिए टार्गट पर आ गए, क्योंकि उन्होंने एक सेकंड हैंड वेस्पा स्कूटर खरीदा था। मुझे पता था कि वे घर गए थे और बैल व भूसा बेचकर कुछ पैसे लाए थे। बाकी पैसों का उन्होंने साथियों से जुगाड़ कर वाहन खरीदा था। उनके साथ जो हुआ, उसके विस्तार में न जाकर मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि साथी के साथ-साथ मैं और मेरे जैसे अन्य सहयोगी काफी दिनों तक दुखी रहे। नतीजा-हमलोगों ने संस्थान बदल दिया। उस संस्थान का हश्र क्या हुआ, कहना नहीं चाहूंगा। निश्चित रूप से आज अच्छी स्थिति में नहीं है।
चर्चा में भटकाव के लिए माफी के साथ मुख्य बिंदु पर आता हूं। कहना यह है कि यदि आपको लगता है कि आप टार्गेट पर हैं तो आपको टार्गेट ओरिएंटेड जाब करना होगा। अब सवाल उठता है कि क्या है टार्गेट ओरिएंटेड जाब? इसे गंभीरता से समझकर इस पर विचार करने की जरूरत है। आपको हमेशा देखना होगा कि आप जहां काम कर रहे हैं, जो जिम्मेवारियां आपको वहां सौंपी गई हैं, उस पर आप कितने खरे उतर रहे हैं। इस बात का ख्याल करना बिल्कुल छोड़ दीजिए कि आप जाति विशेष को लेकर टार्गेट हो रहे हैं या आपका परिधान या वाहन बास को पसंद नहीं आ रहा। आपके ख्याल में सिर्फ और सिर्फ काम होना चाहिए। आपके हर काम में परफेक्शन होना चाहिए।
जी हां, आपको मान लेना होगा कि आप बास के टार्गट पर हैं। इससे आंखें मत चुराइए। आंखें बंद कर लेने से समस्याएं हल नहीं होतीं। पहले मानिए कि आप टार्गेट पर हैं और फिर वही काम पूर्णता-दक्षता से कीजिए, जिस काम को लेकर आपको टार्गट बनाया जा रहा है या बनाया जा सकता है। निश्चित रूप से इसके लिए आपको मेहनत करनी होगी। आपको अपने फील्ड में एक्सपर्ट बनना होगा। रास्ता यही है। यानी टार्गेट हैं तो टार्गेट ओरिएंटेड जाब कीजिए। व्यक्तित्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेगी। अगली पोस्ट में मेहनत पर कुछ विचार रखना चाहूंगा। मेरी नजरों में हर राजनीति का जवाब है मेहनत।

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