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हर राजनीति का जवाब मेहनत

गोल से पहले
गोल से पहले
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यह मेरा तकियाकलाम है, जो कई वर्षों से मेरी जुबान पर है। देखिए मौका आ गया इस पर कुछ लिखने का। मैंने तो बस इतना ही जाना है कि ऐसा एक शब्द नहीं लिखा जा सकता, जो लिखा न गया हो, एक शब्द नहीं बोला जा सकता, जो बोला न गया हो। सब कुछ पूर्व में घटित हो चुका है। मगर, आदमी भूल जाता है। युधिष्ठिर-यक्ष संवाद में आश्चर्य का यही तो जवाब आया। जब यक्ष ने पूछा कि आश्चर्य क्या है तो युधिष्ठिर ने कहा-लोग हर दिन अपनों या किसी न किसी को मरते देखते हैं, पर अपनी मौत को भूल जाते हैं, यही आश्चर्य है। तो जो बातें लिखने जा रहा हूं, मुझे पता है कि आप सबको इसके बारे में पता है, पर जिंदगी के झंझावातों में इस पर जो धूल-गर्द आ गई, उसे झाड़े जाने के ख्याल से विचार प्रस्तुत है।
बचपन में ही पढ़ा था-लेबर नेवर गो इन वेन यानी परिश्रम कभी बेकार नहीं जाता। जरा सोचिए, दुनिया में कौन सी ऐसी सफलता है, जो बिना परिश्रम के हासिल की गई। परिश्रमी व्यक्ति पत्थर को पीसकर मिट्टी बना देता है और उस पर फूल उगा लेता है। तो सूत्र यह है कि यदि आप व्यक्तित्व विकास की दिशा में कार्यरत हैं तो परिश्रम को अपने प्रोग्राम में सबसे ऊपर रखना होगा। एक बच्चे को कोई एक्जाम पास करना है। उसे इसके लिए कठोर मेहनत के साथ तैयारी करनी होगी। उसका परिश्रम ही उसकी सफलता और विफलता तय कर देगा। करेगा कि नहीं?
मुझे एक बार लगा कि मैं जो सोचता हूं वह गलत है। यानी व्यक्तित्व विकास के लिए व्यक्ति को परिश्रमी होना जरूरी नहीं है। मेरे पेशे की ही एक बड़ी और आदरणीय हस्ती के साथ एक बार मैं बोलेरो में लंबी और दिनभर की यात्रा पर था। वे वाहन में अगली सीट पर बैठे थे, जबकि एक साथी के साथ मैं उनके पीछे। बातें साहित्य पर चल रही थीं। फिर जीवन पर चर्चा होने लगी। मौसम सुहाना था। आलम सुबह का था। इसी बीच मैंने उनसे पूछा, सर, दफ्तर की राजनीति से कोई कैसे बचे? बुजुर्गवार चुप हो गए। मुंह में मसाला था, पीक को बिना फेंके मुंह ऊपर उठाकर उन्होंने सिर्फ एक शब्द कहा-मेहनत। मैंने कहा-कैसे?
उन्होंने चलती गाड़ी में गेट खोला, पीक फेंकी और गेट बंद कर लंबी सांस लेते कहना शुरू किया। मेहनत ही वह चीज है, जिसे उपेक्षित नहीं किया जा सकता। मेहनती व्यक्ति छुपा नहीं रहता। आखिर पूरी दुनिया में मेहनती व्यक्ति की ही तो खोज चल रही है। जब आप मेहनती होंगे, अपना काम डूब कर करेंगे तो निश्चित रूप से उसका परिणाम भी दिखेगा। जब आपकी मेहनत का परिणाम चारों ओर दिखने लगेगा तो आपके खिलाफ बोलने वाले क्या बोलेंगे?
बुजुर्गवार ने कहा- आपने जो किया, क्या उसे कोई छिपा सकेगा? आपको पता भी नहीं चलेगा और आपके विरोधियों की जमात में ही आपके समर्थक पैदा हो जाएंगे। और सबसे बड़ी बात, थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि आपकी मेहनत पर कहीं किसी जगह राजनीति हावी हो गई। पर, क्या आपके लिए दुनिया वहीं खत्म हो गई, जीवन वहीं रुक गया? नहीं न? तो जब दूसरी जगह आप जाएंगे तो वहां किस दम पर आप अपना मुकाम तलाश सकेंगे? निश्चित रूप से मेहनत के बल पर ही।
वे चुप हुए और मेरे ख्याल में फिर सूत्र वाक्य गूंजा- दुनिया में हर राजनीति का जवाब है मेहनत, सिर्फ मेहनत। मैं कहना चाहूंगा, मेहनत करते जाइए, फल निश्चित रूप से बेहतर ही आएगा। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी तो यही कहा है – कर्म किए जा, फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान….! व्यक्तित्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेगी। अगली पोस्ट में पढ़िए – आदमी ही है कि सोचता है।

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