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एक महिला रिक्शे से जा रही है और उसकी साड़ी का पल्लू ढलक कर चक्के में फंस रहा है। उसके गिरने और घायल होने का खतरा है। बगल से एक कार में गुजर रहे शहर के कुख्यात हत्यारे की नजर पड़ती है और वह साइड विंडो से सिर निकालकर पल्लू संभालने के लिए महिला और रिक्शेवाले को चेताता है। यह क्या है? यह है एक हत्यारे की सकारात्मक सोच। अपने आप में सिकुड़ा हुआ किसी दफ्तर में काम करने वाला एक आम कर्मचारी अन्य साथी कर्मचारियों से बात-बात पर कहता चलता है, आप मुझ पर दया बनाये रखिए। जब किसी ने उसे कह दिया कि लोग क्या, आप खुद पर दया कीजिए तो उसे लगता है कि वह एक्सपोज हो रहा है, बेइज्जत हो रहा है। यह नकारात्मक सोच है। वफादारी स्वतःस्फूर्त आए तो सकारात्मक सोच है, कुत्ते की तरह हर रोटी देने वालों के प्रति वफादारी उपजती हो तो नकारात्मक सोच है। आजीवन बंधकर रहने वाले संकल्पों से नकारात्मक सोच ही उपजती है, किसी महाभारत को ही जन्म देती है, जबकि मानक मान्यताओं को जीवन शैली में उतार कर सकारात्मक सोचों को आगे बढ़ाया जा सकता है। जो सोचें आपको सृजनशीलता की ओर ले जाती हों, वे सकारात्मक हैं। जिनसे विध्वंस को बढ़ावा मिलता हो, उन्हें नकारात्मक मानिए। अभी कल ही एक बुजुर्गवार कह रहे थे, सकारात्मक सोचों को बढ़ावा देना हो तो हर रात दिन भर के काम का आकलन कीजिए। किसके साथ आपने क्या व्यवहार किया, आपके साथ किसने क्या व्यवहार किया, इसका लेखा-जोखा तैयार कीजिए। इसका सिलसिला शुरू हो गया तो सकारात्मक सोचों को पकड़ने और उसे बढ़ावा देने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। देखना यह भी चाहिए कि उपलब्धियों के नाम पर आपके हिस्से में दिनभर में दर्ज करने लायक क्या रहा? किसी की मदद नहीं की, किसी का आशीर्वाद नहीं लिया, कहीं समय पर नहीं पहुंच सके, दिन भर लोगों की दया खोजते रहे तो मान लीजिए कि आप सकारात्मक सोचों से दूर रहे, नकारात्मकता आप पर हावी रही।
एक खबर छपी। दूल्हे तैयार, दुल्हन का इंतजार। मसला यह था कि महिला रिमांड होम की ओर से वहां रह रही लड़कियों की शादी करने की पहल की जा रही है। इस दिशा में सक्षम लड़का वालों से अप्रोच किया गया और उन्हें रिमांड होम की लड़कियों से शादी करने को तैयार किया गया। उनका अप्रोच कारगर रहा औऱ कई लड़के इसके लिए तैयार हो गए। सुखद पहलू यह रहा कि लड़कों की संख्या की तुलना में लड़कियां कम पड़ गईं। तो रिमांड होम वालों ने राजधानी के रिमांड होम से शादी के लिए लड़कियां भेजने की अपील की ताकि उनका दांपत्य संसार सज सके। खबर इसी पर आधारित थी। मेरी समझ से खबर लिखने वाले ने कितनी सकारात्मक सोच के साथ यह खबर बनाई थी। बनाई थी कि नहीं? जो लड़कियों के बाप हैं, उनसे पूछिए, लड़का खोजना और लड़की की शादी करना कितना जहद्दम भरा काम है। अब नकारात्मक सोच देखिए। एक साथी की पहली टिप्पणी थी-ये क्या खबर है? जनसंख्या के मिजाज से लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम ही होती जा रही है, ऐसे में लड़के शादी के लिए क्यों न तैयार हों? और ऐसे लड़कों के लिए अब प्रशासन ढूंढ़कर लड़कियां उपलब्ध करा रहा है, बहुत बुरा कर रहा है। अखबार खबर छाप रहा है, अब क्या समाचार पत्र यही परोसेंगे? साथी वर्तमान दशा पर भीतर-भीतर काफी घुल भी रहे थे। मेरी समझ से यह उनकी नकारात्मक सोच थी। थी कि नहीं?
बहुत सारे लोग कल की चिंता में घुलते रहते हैं, आज भी खराब कर लेते हैं। जबकि, कल कभी आता है? आता तो आज है, गाता है, चला जाता है। कल क्या होगा कौन माने, अंजाम खुदा जाने। इस पर दूसरों को फिक्र करने दीजिए, आप तो सिर्फ हंसिए, जमाने पर नहीं, खुद पर भी नहीं, खुश होकर हंसिए। हंसी के बीच निकली सोच हमेशा सकारात्मक होती है। आपने देखा होगा कि लोग अकसर बॉस के मूड के बारे में पूछते रहते हैं। क्यों? लोग मानते हैं कि बॉस का मूड ठीक होगा तो बातें ठीक होंगी। यहां सकारात्मकता को पकड़ा जा सकता है। आदमी को सकारात्मक सोचों को दिशा देनी हो तो उसे खुश रहने की कला सीखनी होगी। जितना आप खुश रहेंगे, सोचें उतनी सकारात्मक होंगी। और आफको पता है, दुख और सुख विपरीतार्थक शब्द नहीं हैं। एक ही चीज के दो अनुपात है। रात में सोये थे, सुबह जगते, इसकी क्या गारंटी थी? जगे तो इसमें आपकी क्या भूमिका थी? तो जब जग ही गए तो आज जी लेने की कला सीखिए। जी लेने की कला सकारात्मक सोचों को विकसित करने से उपजती है। उपजती है कि नहीं? तो आपका दिल दरिया हो यानी उसमें सबकुछ बहा ले जाने की क्षमता हो, खुशियों में भी आंखें आंसू निकालती हों और दिमाग का दरवाजा हमेशा हर पहलू पर विस्तार से विचार करने को तैयार हो तो तब जाकर उपजती है सकारात्मक सोचें। तो देखा आपने बात बढ़ चुकी है। सकारात्मक सोचें खुशियों और शुक्रिया देने की आधारशिला पर ही टिकी होती हैं। व्यकित्त्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेंगी। अगली पोस्ट में ‘शुक्रिया’ पर विचार किया जाएगा।
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