Menu
blogid : 129 postid : 29

खुशमिजाजी का कष्टों से क्या मतलब?

गोल से पहले
गोल से पहले
  • 72 Posts
  • 304 Comments

आम तौर पर यही समझा जाता है कि खुशमिजाज होना एक स्वाभाविक प्रकिया है, नैसर्गिक प्रक्रिया है। मगर नहीं, आदमी खुद को खुशमिजाजी बना सकता है। आपको कोई दुख है, तकलीफ है, परेशानी है, कष्ट है, फिर भी आप खुशमिजाज रह सकते हैं। इसके ठीक विपरीत, आपको तमाम खुशियां मिल जाएं, तमाम सुख उपलब्ध करा दिए जाएं, फिर भी आप दुखी हो सकते हैं। आप इसी बात पर दुखी हो सकते हैं कि आखिर ये सारी सुविधाएं मुझी को क्यों उपलब्ध कराई जा रही हैं। ऐसे दो-चार लोग तो आपके इर्द-गिर्द होंगे ही।
खुशमिजाज रहने के जो दो-चार सूत्र हैं, वह मानव के वजूद की मूल अवधारणा में छिपी हुई हैं। उन्हें समझने की जरूरत है। आखिर दुखी क्यों हुआ जाए, आखिर दुखी क्यों रहा जाए? साधारण सी घटना जो कभी खुशी प्रदान करती है, वही आगे जाकर दुख का कारण बन जाती है या बन सकती है। जो घटना दुख प्रदान करने वाली होती है, उसी से सुख मिलने लगता है। एक बच्चा चिल्लाता है, यदि बच्चा आपका हुआ तो हो सकता है कि आप उसकी चिल्लाहट में आनंद महसूस करें। यही बच्चा किसी दूसरे का हुआ तो उसकी चिल्लाहट आपको परेशान करने लगती है। दोस्त से मिलने पर हाथ मिलाते हैं। खुशी होती है। दोस्त हाथ न छोड़े तो हाथ मिलाना देखते-देखते दुख का कारण बन सकता है। गुरु की फटकार बुरी लगती है, पर जिसने उस फटकार को स्वीकार कर लिया, उसने ज्ञान अर्जन कर लिया।
मेरा भाई एयरफोर्स में है। वह कहता है कि जब वह ट्रेनिंग पर था तो उसके मेस में एक बोर्ड टंगा था, जिस पर लिखा था-इट फार हेल्थ, नाट फार टेस्ट यानी स्वास्थ्य के लिए खाइए, स्वाद के लिए नहीं। इसका एक अर्थ ऐसा भी समझा जा सकता है कि स्वाद के लिए खाई जाने वाली चीजें स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होती। कहीं पढ़ा था, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मरने से पहले अपने बाल सैंपू कराए थे, चेहरे को सजवाया था। उनका मानना था कि जब लोग उनके शव को देखने आएं तो शव भी सुंदर दिखे। दुनिया जानती है कि वे सौंदर्यप्रेमी थे, पर उनकी यह हरकत क्या उनकी खुशमिजाजी को व्यक्त नहीं करती?
गीता का सार – क्या लाए थे, क्या ले जाओगे, जो लिया यहीं से लिया, जिसे तुम आज अपना समझते हो, वह कल किसी और का था, परसों किसी और का हो जाएगा – कितना सच है। हालांकि, इस बात को जानते सब हैं, पर ठीक से न तो समझने की कोशिश करते हैं, न इसकी जरूरत समझते हैं। पर, व्यक्तित्व विकास के लिए और खासकर खुशमिजाज रहने के लिए इस सूत्र को गहराई से समझना और इसके अनुरूप हर पल विचार करना मेरी समझ से चमत्कारिक परिणाम देता है।
एक बात और, आगे आने वाला पल क्या होगा, कोई जानता है? आप जानते हैं? साधारण सा उत्तर होगा – नहीं। पर, यह पूरा सत्य नहीं होगा। आप केला खाएंगे तो कह सकते हैं कि सर्दी होगी। आप जहर खाएंगे तो कह सकते हैं कि मौत होगी। कह सकते हैं कि नहीं? तो आगे आने वाला पल क्या होगा, यह भले न कहा जा सके, पर कैसा होगा, इसका आकलन किया जा सकता है। दुनिया का वह कौन व्यक्ति होगा, जो आने वाले पलों को दुखदायी बनाना चाहेगा। कोई होगा क्या? नहीं न? तो यह पल सुखदायी कैसे होगा? क्या हरदम आपके मुंह लटकाये रहने से? क्या हरदम निराशा में डूबे रहने से? क्या हरदम किसी की आलोचना में लिप्त रहने से? नहीं, बिल्कुल नहीं। इन सबका त्याग करना होगा।
लाख कष्ट रहे, परेशानी रहे, दुख रहे, समस्या रहे, यदि आप खुशमिजाज रहे तो इन कष्टों, परेशानियों, दुखों, समस्याओं से पार पा सकते हैं, इनका निवारण ढूंढ सकते हैं। तो कष्टों से पार पाने के लिए भी जरूरी है कि आप खुशमिजाज रहें। यदि परेशानियों के साथ आप भी परेशान रहे तो कौन खोजेगा उन परेशानियों से निजात पाने का रास्ता? यकीन मानिए, हर सुबह के बाद जैसे रात आती है, वैसे ही हर रात के बाद सुबह आती ही है। बस, आशावान बने रहिए, खुशमिजाज बने रहिए। विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराते रहिए। व्यक्तित्व विकास पर चर्चा अभी चर्चा जारी रहेगी। अगला चैप्टर होगा-विपरीत परिस्थितियों से कैसे करें मुकाबला?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh