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धैर्य न हो तो बिगड़ जाता है खेल

गोल से पहले
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क्या कुछ भी एकाएक होता है? आपने चाहा और क्या खाना बनकर तैयार हो जाता है? कहीं जाना है तो क्या वहां आप झटके से पहुंच जाते हैं? क्या पौधा रोपते ही उसमें फल लग जाता है? कोई भी फसल बीज डालते ही क्या पककर तैयार हो जाती है? नहीं न? यहां तक कि चूल्हा पूरा गरम हो फिर भी ठंडे पानी को खौलने में समय लग जाता है। तो यह जो परिणाम है, उसे पाने के लिए पाने वालों को अपनी ओर से सब कुछ कर लेने के बाद इंतजार करना पड़ता है। धैर्यपूर्ण इंतजार। चूल्हा गरम है और आपने पानी गरम करने के लिए पतीले को उस पर चढ़ा दिया। तो इतना तो आपको मालूम है कि पानी गरम हो रहा है। अब पानी के गरम होने में जो समय लग रहा है, उस दौरान कोई निराश हो जाए तो यह उसकी बेवकूफी होगी न? पौधा रोपा और आप उसकी लगातार देखभाल भी कर रहे हैं। तो आपको यह पता है कि इसमें फल आने हैं। अब फल आने में देरी हो रही है तो निराशा कैसी? पेड़ जवान होगा, फल देने की स्थिति में आएगा, तभी तो उसमें फल आएंगे। तो यह जो पेड़ के जवान होने और फल के लगने के बीच का समय अंतराल है, उसे तो काटना ही पड़ेगा। आप काटते भी हैं। इसे ही तो धैर्य कहते हैं। धैर्य का मतलब .यह मानना कि दुनिया में कुछ भी एकाएक नहीं होता, एटरैंडम नहीं होता। हां, यहां यह समझने की बात है कि यदि आपने आम के पौधे लगाए होंगे तो आम ही पाएंगे, चावल चूल्हे पर चढ़ाया होगा तो भात ही बनेगा। चिकेन डाली होगी तो फिश नहीं मिलने वाली। तो शायद इससे किसी को इनकार नहीं होना चाहिए कि किसी ने कुछ प्रयास किया, उसका उस प्रयास के अनुपात में उसे परिणाम मिलने ही वाले हैं। हां, बीच का समय है, उसे धैर्य के साथ गुजारना ही होगा।
अब जरा इस पर विचार करें कि जिस व्यक्ति ने धैर्य नहीं रखा, उसका खेल कैसे बिगड़ जाता है। बीजारोपण को ही देखिए। आपने बीज डाले, आपको उसकी प्रस्फुटन अवधि का पता नहीं है, पता है भी तो धैर्य खो बैठे और आप बीज को मिट्टी से निकालकर लगे उलटने-पुलटने। अब इसे आसानी से समझा जा सकता है कि परिणाम क्या हासिल होगा। इस धैर्यहीन कार्रवाई में बीज ही नष्ट हो गया। हो गया कि नहीं? थोड़ा व्यावहारिक उदाहरण। हमारे एक सीनियर थे। दफ्तर के नंबर टू ने जब इस्तीफा डाला तो प्रबंधन के स्तर तक से उक्त सीनियर को नंबर टू बनाने की बात चलने लगी। ढंके-छिपे ढंग से उन्हें भी इस बात का इशारा कर दिया गया कि नंबर टू नहीं रहे तो आपको ही उनका काम देखना होगा। जूनियर्स भी उनका उसी तरीके से सम्मान करने लगे। अब सीनियर महोदय ने एक दिन नंबर टू के केबिन का उद्घाटन कर दिया। बैठ गए, अगरबत्ती जलवाई, लड्डू बंटवाए और लगे बधाइयां कबूल करने। सब कुछ ठीक था। पर, कांटा बहुत ऊपर जाकर फंस गया। वहां यह महसूस किया गया कि इस व्यक्ति ने प्रबंधन से उसकी हैसियत और अधिकार छीन लिए। घोषणा करने और प्रोन्नति देने के अधिकार छीन लिए। नतीजा, सीनियर महोदय के पूरे व्यक्तित्व पर जो सवाल उठा, वह अगले सात-आठ महीने के बाद उनके इस्तीफे की परिणति के रूप में सामने आया। उस वक्त मुझे लगा कि धैर्य का होना व्यक्तित्व विकास के लिए कितना महत्वपूर्ण है। है कि नहीं? आप सोचिए। मेरी ओर से तो फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेगी। अगली पोस्ट में पढ़िए – तू मेरा यार, मैं तेरा यार।

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