Menu
blogid : 129 postid : 41

काम मेरा नाम तेरा, वाह भई वाह

गोल से पहले
गोल से पहले
  • 72 Posts
  • 304 Comments

यह एक आम कहावत है कि करे कोई और भरे कोई। जब कभी ऐसा मामला सामने आता है तो संजीदा ही होता है और आदमी को हिला कर रख देता है। व्यक्ति की पूरी छवि को खराब करता है, वह अलग से। इसे गंभीरता से समझने और अपने आचरण को दुरुस्त करने की जरूरत है। अपने व्यक्तित्व विकास के लिए प्रयासरत व्यक्ति को तो इस पूरे मसले को गंभीरता से समझ ही लेना चाहिए, क्योंकि लगभग हर फील्ड (क्षेत्र) में आजकल यह तमाशा खूब देखने को मिल रहा है। हर व्यक्ति क्रेडिट लेने की होड़ में पड़ा है। इतना ही नहीं, इसी के साथ अपनी गल्ती दूसरे के माथे थोपने का भी सिलसिला सा चल पड़ा है। जाहिर है जब किसी चीज की होड़ चल पड़ती है तो नए-नए हथकंडे भी सामने आते हैं, झेलने भी पड़ते हैं। दिक्कत जो फंसती है, वह यह कि जब आप दूसरे की क्रेडिट लेते होते हैं तो पूरा मामला आपके फेल होने का किस्सा ही अपने अंदर छुपाए होता है। यह प्रक्रिया आपको एक नकारेपन की ओर भी ले जाता है। क्षणिक अवस्था व आवेग के साथ क्षणिक खुशियां देने वाली आपकी यह हरकत आपको एक लंबे समय तक अपमानित होने की पृष्ठभूमि भी तैयार करती होती है।

आप किसी भी धर्म को मानने वाले हों, किसी भी परंपरा में पल रहे हों, इतना तो मानते ही होंगे कि चीजें छुपती नहीं हैं। एक न एक दिन सच्चाई सामने आती है और जब आती है तो अपने पूरे वेग और आवेग के साथ आती है। तो दूसरे की क्रेडिट को अपने खाते में दिखाकर कुछ क्षणों, दिनों, महीनों के लिए तो कोई खुश हो सकता है, लंबे समय तक के लिए नहीं। और जब आप एक्सपोज हुए तो? व्यक्तित्व विकास के लिए खतरा वहीं पैदा होता है। एक्सपोज होने पर आप अन्य लोगों की नजरों में गिरेंगे, यह तो एक मसला है, खतरनाक बात यह है कि तब आप अपनी नजर में भी गिर सकते हैं।

मैंने तो, भई, देखा है। मैंने देखा है, एक सीनियर छुट्टी पर थे। मैंने अपनी ओर से जो काम का प्लान किया, उसे उन्होंने यह कहकर रोक दिया कि आऊंगा तो डिस्कस करूंगा। वे आए और काम वैसा ही हुआ, जैसा मैंने प्लान किया था। दूसरे की क्रेडिट अपने खाते में करने की आदत, क्या करते? एक दिन मेरे ही सामने किसी दूसरे सीनियर से लगे उस काम को अपने खाते में बताते हुए बखान करने। एकाएक उनकी नजर मेरे ऊपर गई, नजरें मिलीं, कुछ याद आया, अहसास हुआ और मैंने देखा उनकी पलकों को नीचे गिरते। उनकी पलकों का झपकना, नजरों का गिरना उनका अपने आप में ही गिरना तो था।

इसके ठीक विपरीत, आपके आसपास वैसे लोग भी होंगे, जो इस खेल से परे हर किसी को उसके काम की न केवल क्रेडिट देते हैं, बल्कि उसे सार्वजनिक तौर पर घोषित करते हैं और उसे सम्मान का भागी बनाते हैं। अब वैसे लोगों की छवि, गरिमा और प्रतिष्ठा को जरा आंखें बंद कर याद कर लीजिए। ऐसे व्यक्ति के होने से माहौल भी कितना खुशनुमा होता है, इसे भी याद कर लीजिए। साफ हैं, वैसा व्यक्ति, कोई जरूरी नहीं कि किसी बड़े ओहदे पर हो, लोगों के बीच प्रतिष्ठा पाता है और पाता ही रहता है। इसी के साथ, आपके आसपास वैसे लोग भी होंगे, जो दूसरों की गल्तियां अपने सिर ले लेते हैं और गल्ती करने वाले को उसकी गल्ती के लिए कभी अपमानित होने का मौका नहीं देते। वे खुद तो सम्मान और प्रशंसा के पात्र बनते ही हैं, गल्ती करने वाले साथी को भी सबक मिलता है और देखा तो यह गया है कि वह कम से कम उस प्रकार की गल्तियां नहीं दोहराता।

तो व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया में यह एक कला ही है कि आप कभी दूसरे की क्रेडिट अपने नाम करने की कोशिश न करें, बल्कि हर व्यक्ति को उसके काम की क्रेडिट दें। साथ ही यह भी कोशिश हो कि अपनी गल्ती दूसरे के माथे न थोपें। एक बार इस पर अमल आपने शुरू किया तो फिर कौन है, जो आपको प्रतिष्ठित होने से रोक दे?

व्यक्तित्व विकास पर चर्चा अभी जारी रहेगी। अगली पोस्ट में पढ़िए – प्रतिस्पर्धा का मतलब दुश्मनी नहीं।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh