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अपने घर में रहिए पराये की तरह

गोल से पहले
गोल से पहले
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जी हां, अपने व्यक्तित्व को चमत्कारिक बनाना चाहते हैं, सर्वग्राह्य बनाना चाहते हैं, सुखमय बनाना चाहते हैं और शांतिपूर्ण बनाना चाहते हैं तो मेरी सलाह है कि इस आलेख के शीर्षक को सूत्र वाक्य मानिए और आज से ही इस पर अमल शुरू कर दीजिए। क्या है इस वाक्य में? आइए दोहराएं। कहा यह जा रहा है कि अपने घर में रहिए पराये की तरह। थोड़ा अटपटा लग रहा होगा। मन में सबसे पहला जो सवाल उठ रहा होगा, वह यह कि क्यों भई, अपने घर में पराये की तरह रहने की सलाह क्यों दी जा रही है?

अब जरा मेरे साथ सोचिए। जब आप पराये घर में जाते हैं तो क्या करते हैं? सोचिए। बिल्कुल सलीके से घुसते हैं। घुसते हैं कि नहीं? चप्पल खोलकर, पैरों को झाड़कर। संभलकर बैठते हैं और सतर्क व्यवहार करते हैं। करते हैं कि नहीं? उस घर के एक-एक सदस्य यहां तक कि बच्चों के साथ भी आपका व्यवहार सम्मानपूर्ण होता है। होता है कि नहीं? उस घर की किसी चीज को नुकसान पहुंचाने की तो आप सोचते ही नहीं। जरा सोचिए, उस घर की महिलाओं की आप कितनी इज्जत करते हैं? करते हैं कि नहीं? तो आपका यही आचरण आपके अपने घर में भी शुरू हो जाए तो क्या अच्छा नहीं रहेगा? क्या यह बिल्कुल चमत्कारिक प्रभाव उत्पन्न करने वाला नहीं होगा? मेरा मानना है कि होगा और जरूर होगा। बस इस पर एक बार सोच-विचार कर अमल तो कीजिए।

अब इसी मिजाज के दूसरे पहलू पर भी जरा गौर फरमाइए। जिस तरह आपने अपने घर में पराये की तरह रहना शुरू किया, ठीक उसी तरह पराये घर में यदि रहने की नौबत आए तो अपने की तरह रहने पर अमल कीजिए। मतलब समझे? पराये घर में रहिए अपने की तरह। जी हां, पराये घर के हर साजोसामान को अपने घर के सामान की तरह हिफाजत कीजिए, उसके साथ संभलकर पेश आइए। उस घर की माता-बहनों को अपनी माता-बहन समझिए और उसी प्रकार उनसे व्यवहार कीजिए। उस घर के बड़े-बुजुर्ग को अपने घर के बड़े-बुजुर्गों सा सम्मान दीजिए और फिर देखिए चमत्कार। चमत्कार होगा कि नहीं? मेरा तो मानना है कि होगा और जरूर होगा, बस एक बार अमल करके तो देखिए।

जिंदगी के वजुहातों से दो चार होने के दौरान आदमी शिकवा-शिकायतों में ही बहुत सारा समय गुजार देता है। शिकायत का पुतला बना घूमता-फिरता है आदमी। उसे शिकायत रहती है अपनों से, परायों से, जान-पहचान वालों से और वैसे लोगों से भी जो उसके जान-पहचान वालों में भी नहीं होते। यह शिकायती लहजा उसकी रातों की नींद हराम कर देता है, दिन का चैन छीन लेता है, अपनों से दूर कर देता है, परायों को करीब नहीं फटकने देता है। गफलत, गफलत, शंका-शक, चिंता, गुस्सा, बदला-दुश्मनी, घृणा-वितृष्णा, यही सब कुछ तो हैं जिसकी परिधि में फंसकर आदमी अपना पूरा व्यक्तित्व खराब कर लेता है, वर्तमान को दुखों से भर लेता है, भविष्य चौपट कर लेता है।

वर्तमान सुखद रहे, भविष्य संवरे, इसके लिए जरूरी है व्यक्ति के व्यक्तित्व का सुधरना। व्यक्तित्व विकास की बड़ी पाठशाला उसका अपना घर ही हो सकता है। घर से संभलने की कवायद हो तो प्रकाश बाहर भी फैलना शुरू होता है। मेरा मानना है कि घर से शुरुआत तभी हो सकती है, जब आप अपने घर में पराये की तरह और पराये घर में अपने की तरह रहना शुरू कीजिएगा। व्यक्तित्व विकास पर अभी चर्चा जारी रहेगी। धन्यवाद। अगली पोस्ट से शुरू होगी हीन भावना से उबरने के उपायों की श्रृंखला।

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