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हीन भावना से ऐसे उबरें – 1

गोल से पहले
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एक गंभीर मसला। इंफीरियरिटी कांप्लेक्स (हीन भावना)। हर कोई कभी न कभी, कहीं न कहीं इससे ग्रसित हो ही जाता है। जगह मायने नहीं रखती। घर में, परिवार में, सफर में, पार्टी में, दफ्तर में, कालेज में, कहीं भी यह हादसा हो सकता है। इसके पहले कि हम जानें कि व्यक्ति हीन भावना से कैसे निकले, कैसे उबरे, यह जानना ज्यादा जरूरी है कि व्यक्ति आखिर हीन भावना से कैसे और किन परिस्थितियों में ग्रसित होता है। मेरा मानना है कि एक बार हीन भावना के पनपने और उससे ग्रसित होने के कारणों का विश्लेषण कर लिया जाए तो शायद जवाब तलाशना कठिन नहीं रह जाएगा। आइए, थोड़ी मशक्कत करते हैं उन स्थितियों-परिस्थितियों को जानने का, जिनमें व्यक्ति हीन भावना का शिकार हो जाता है। दरअसल, अलग-अलग परिस्थितियों में हीन भावना के पनपने के कारण भी अलग-अलग होते हैं। जब कारण अलग-अलग होंगे तो जाहिर है कि उनके निदान की विधियां भी अलग-अलग होंगी।

प्राथमिक स्तर पर दो चीजें हैं। एक परिवेश, दसरी व्यक्ति की क्षमता। आप जिस लायक हैं, उस लायक यदि आपको परिवेश नहीं मिला, माहौल नहीं मिला और ऐसी स्थिति निरंतर बनी रही तो आपके हीन भावना से ग्रसित होते जाने की संभावना बन आती है। दूसरी ओर जब आप क्षमता से अधिक जिम्मेवारी ओढ़ लेते हैं, सुबह से शाम तक भाग-दौड़ के बाद भी आउटपुट निल पाते हैं और कार्यों के निवर्हन में हमेशा पीछे रह जाते हैं तो वैसे माहौल में भी आपके हीन भावना से ग्रसित होने की संभावना बन आती है।

इसके अलावा भी दो और स्थितियां हैं, जो हीन भावना के पेच में व्यक्ति को फंसाती हैं। एक कमजोर नेतृत्व के नीचे काम करने के कारण उत्पन्न होती है, दूसरी व्यक्ति द्वारा स्वयं रचित होती है। ऐसा देखा गया है कि कमजोर नेतृत्व अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए भी सदा दूसरों को उपेक्षित रखता है। अपने नीचे के साथियों को निराशा की गर्त में धकेलने और अपमानित करने के लिए वह तरह-तरह के हथकंडे अपनाता है। दरअसल, कमजोर नेतृत्व की चाहत अपने नीचे के लोगों से ऐन-केन-प्रकारेण काम करा कर उसका श्रेय खुद लूटना होता है। जब व्यक्ति के काम का सही और अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता तो ऐसी स्थिति में उसके हीन भावना से ग्रसित होते जाने की संभावना बनती है।

व्यक्ति खुद भी अपने विचारों से बैठे-बिठाए हीन भावना से ग्रसित हो जाता है। यह बिल्कुल उसका निठल्ला और तुलनात्मक अध्ययन को अग्रसर रहने वाला माइंड होता है। किसी ने कार खरीद ली, वह हीन भावना से ग्रसित हो गया। किसी का बच्चा फर्स्ट आ गया, वह हीन भावना से ग्रसित हो गया। कोई पार्टी में गया, सजे-धजे लोगों को देखा और आ गई हीन भावना। फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास की श्रृंखला में हीन भावना (इंफीरियरिटी कांप्लेक्स) से कैसे उबरें जैसे अहम चैप्टर पर चर्चा अभी जारी रहेगी। कीजिए अगली पोस्ट का इंतजार।

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