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हीन भावना से ऐसे उबरें – 3

गोल से पहले
गोल से पहले
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अभी कुछ दिनों पहले मेरे मोबाइल पर एक जोकवाला एसएमएस आया। एक बच्चे से कोई पूछ रहा था- जिस व्यक्ति में कमी ना हो, उसे क्या कहते हैं? बच्चे का जवाब था – कमीना (कमी ना)। हंसने की बात थी, एसएमएस पढ़कर हंसा, पर बात थी मार्के की। सोचा, ऐसा कौन सा व्यक्ति है, जिसमें कमी ना हो? है ऐसा कोई पूर्ण पुरुष? कभी किसी ने उसे देखा? कभी किसी ने उसके बारे में पढ़ा? नहीं न? तो यहां से खुलता है हीन भावना से बचने का मार्ग।

हर व्यक्ति में कोई न कोई कमी होती है। आपमें भी यदि कोई कमी है तो उसकी वजह से किसी हीन भावना से ग्रसित होने और ग्रसित होकर हलकान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। जिसके सामने आप दब्बू बने रहते हैं, जरा आंखें खोलकर देखेंगे तो पाएंगे कि वह भी किसी न किसी के सामने आपसे ज्यादा दब्बू बना रहता है। तो फिर हीन भावना की कोई बात ही नहीं है। दुनियादारी है, वक्त का तकाजा है। आप जब भी अपने लक्ष्य से भटकेंगे, अपने काम से चूकेंगे, आप में हीन भावना के बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है। सुना ही होगा, पढ़ा ही होगा- नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो। आप जितना काम करेंगे, जितनी मेहनत करेंगे, उतना ही रिफंड पाएंगे। रिफंड खुशी के पारामीटर को बढ़ा देता है, हीन भावना को उड़नछू कर देता है।

एक धनी आदमी अपने बेटे को गांव में गरीबी व गरीबों को दिखाने ले गया। दिन भर गरीबों के दर्शन कराकर शाम में घर लौटने के दौरान पिता ने बेटे से पूछा-बताओ बेटे, आज तुमने क्या देखा और क्या महसूस किया? बेटे का जवाब बड़ा महत्वपूर्ण था। मेरा खास तौर से आग्रह है , उसे गंभीरता से पढ़िएगा। बेटे ने कहा, पापा जी, मैंने देखा , हम लोग एक कुत्ता पालते हैं, उनके पास चार-चार, पांच-पांच कुत्ते हैं। पिता चुप। बेटा बोलता जा रहा था-हमारे पास रहने के लिए जमीन का एक टुकड़ा है, उनके पास जहां तक नजर जाए, वहां तक जमीनें हैं। हम दीवारों में बंद लोग हैं, उनके सामने खुला आकाश, फैली धरती है। हम स्वीमिंग पूल में नहाते हैं, जो दो फर्लांग तक भी नहीं जाता, उनके पास बड़ी-बड़ी, लंबी-लंबी नदियां हैं। हम भोजन करने के लिए अनाज बाजार से खरीदते हैं और हमारे खाने के लिए वे उसी अनाज को पैदा करते हैं। हमने अपनी सेवा के लिए नौकर लगा रखे हैं, जबकि उन्होंने सेवा में अपना जीवन झोंक दिया है। सच पिताजी, आज हमने जाना कि कितना गरीब हैं हम! पिता चुप, बोलने के लिए कुछ भी नहीं रहा था।

यह कथा दृष्टि की व्यापकता को फोकस करती है। आप जिन चीजों को लेकर हीन भावना से ग्रसित होते हैं, दरअसल वह आपका निराश और आग्रह छोड़ चुका मन है। अपने मन को आग्रही बनाइए, उस आग्रह के लिए खुद को क्रियाशील कीजिए, हीन भावना की तो कहीं कोई बात ही नहीं है। बढ़ते एक-एक कदम के साथ आप एक मार्ग की रचना करते जाएंगे और पाएंगे कि उसका अनुसरण करने वाला आपके पीछे ही है। पर, कदम तो बढ़ाना ही होगा। इसके लिए हीन भावना नहीं, इच्छाशक्ति को जागृत करने की जरूरत है। कार्ययोजना बनाने और उस पर अमल करने की जरूरत है। हीन भावना से उबरने के उपायों पर अभी चर्चा जारी रहेगी। कीजिए अगली पोस्ट का इंतजार।

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