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हीन भावना से ऐसे उबरें सीरीज पर बहुत सारे मित्रों, पाठकों की राय आई। उनका मैं शुक्रगुजार हूं। आखिरी टिप्पणी अनुराधा चौधरी जी की आई, जिसमें उन्होंने अपने चाचा के मशविरे के साथ अपने जीवन का एक बेहतर अनुभव शेयर किया है तथा मेरे आलेखों की सराहना के साथ अगली पोस्ट के इंतजार का तलब भी जाहिर किया है। मैं शुक्रगुजार हूं अनुराधा जी का भी कि उनके शब्द मेरे हौसले बढ़ा रहे हैं कि मैं जो लिख रहा हूं, वह न केवल पढ़ा जा रहा है, बल्कि पसंद भी किया जा रहा है।
फोन लाइन पर एक मित्र के दोस्त का सुझाव भी मैं यहां आप सभी लोगों से शेयर करना चाहूंगा। इलाहाबाद में रहते हैं। नाम है कुलदीप। कहा है कि हीन भावना से उबरना हो तो जमकर गालियां दो, सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी। किसी की बातों को खींचना निश्चित रूप से आदर्श शिष्टाचार की बात नहीं हो सकती,पर कुलदीप भाई से माफी के साथ उनकी बातों पर इस सिलसिले को थोड़ा बढ़ाना चाहता हूं। निश्चित ही कुलदीप भाई मजाकिया किस्म के इंसान होंगे और मजाकिया किस्म के इंसान मजाक-मजाक में गाली दे डालते हैं। ऐसा वे इसलिए कर पाते हैं कि वे सामने वाले को जानते हैं और सामने वाला भी उन्हें पहचानता है। इस जान-पहचान का नतीजा होता है कि सामने वाला गालियों का बुरा नहीं मानता।
पर, जिस हीन भावना से उबरने की बात सीरीज में चल रही थी, बाहैसियत उस मिजाज के यदि गाली देने पर अमल किया गया तो यही माना जाएगा कि व्यक्ति हीन भावना से ग्रसित है और उसी के जेरेसाया गालियां बक रहा है। कुलदीप भाई ने बहुत गलत नहीं कहा है। निराशा, हताशा की स्थिति में लोग ऐसा भी करते है। गालियां देते हैं और खासकर सुनाने के अंदाज में गालियां देते हैं। मेरा मानना है कि गालियां बकना हीन भावना से ग्रसित होने का ही परिचायक है, न कि इससे निकलने का उपाय। मेरा मतलब यह है कि यदि आप गाली दे रहे हैं तो यह साबित कर रहे हैं कि आप हीन भावना के शिकार हैं।
मेरा मानना है, गालियां देने से समस्या का निदान नहीं हो सकता। ऐसा कर आप अपनी जुबान तो खराब करेंगे ही, इसके कुछ खतरे भी आपको झेलने पड़ सकते हैं। गाली देने के एवज में आपको उससे भी बड़ी-बड़ी गाली सुननी पड़ सकती है। और बड़ी गाली खाकर आप जिद पर आए, कोई और एक्शन लिया तो मामला मार-पिटाई पर उतर सकता है। इसमें भी खतरा यह है कि यदि आप कमजोर पड़े तो पिट भी सकते हैं। और ख्याल कीजिएगा, गाली देने वाला व्यक्ति जब कहीं पिटता है तो उसे बचाने वाले भी कम ही दिखते हैं। गाली देने वाले को सोसाइटी में कभी अच्छा नहीं माना गया। उल्टे लोग उससे किनारा कर जाते हैं। हीन भावना से उबरने के लिए आप गाली देने लगे तो निश्चित ही उन लोगों के आपसे दूर हो जाने का खतरा है, जो आपके हमदर्द, हमकरीब और हमकदम हैं।
दरअसल, हीन भावना एक तुलनात्मक सोचों वाली मानसिक स्थिति है, जिसमें फंसा व्यक्ति अपनी स्थिति से ज्यादा दूसरों की स्थिति के अध्ययन में उलझकर अपना सर्वस्व चौपट कर रहा होता है। क्या इसका निदान गाली देने से संभव हो सकता है? नहीं, कुलदीप भाई, बिल्कुल नहीं। जरा सोचिए, गाली देने से आपकी स्थिति में क्या फर्क पड़ेगा? जिसकी तुलना से आप हीन भावना से ग्रसित हुए, उस पर क्या फर्क पड़ेगा? मेरा मानना है- कुछ भी नहीं। गाली देकर थोड़ी देर के लिए संतुष्ट भले हो लें, पर यह एक और अवसाद की ओर ले जाएगा। हीन भावना से ग्रसित व्यक्ति के लिए अवसाद की एक और अवस्था खतरनाक ही कही जा सकती है। इसलिए गाली नहीं। गाली दुर्जनता की पहचान है, और हीन भावना से ग्रसित व्यक्ति को इस राह पर आगे बढ़ने की सलाह कतई नहीं दी जा सकती। फिलहाल कुलदीप भाई को धन्यवाद कि उनकी बातों से हीन भावना से जुड़े एक और मसले पर विचार करने का अवसर मिला।
हीन भावना से उबरने के उपायों की तलाश करती यह आखिरी कड़ी थी। फिर कुछ औऱ विचार आया तो निश्चित रूप से सिलसिला यहीं से शुरू होगा। हां, व्यक्तित्व विकास पर सिलसिला जारी रहेगा। अगली पोस्ट से शुरू होगा – भविष्य के मैकेनिज्म पर विचार। आखिर क्या है भविष्य? देखते-देखते यह कैसे चौपट हो जाता है और कैसे संवर जाता है? कीजिए इंतजार।
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