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… फिर भी बचा रहता है भविष्य

गोल से पहले
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आदमी डरता है, घबराता है, भाग-दौड़ करता है, हड़बड़ी-जल्दबाजी मचाता है, नैतिक-अनैतिक सब कुछ करता है, करने को तैयार रहता है, काहे के लिए? भविष्य के लिए ही न? कुछ अपने भविष्य के लिए तो कुछ बच्चों के भविष्य के लिए ही न? सोचों की थोड़ी ऊंची उड़ान ली जाय तो समाज के लिए, कौम के लिए और देश के लिए ही न? छोटी-छोटी घटनाओं पर लोग-बाग हाय-तोबा मचाते हैं कि चौपट हो गया भविष्य, बर्बाद हो गए हम। और ध्यान देने की बात यह है कि जिस वक्त हम ऐसा बोलते रहते हैं, सोचते रहते हैं, समझते रहते हैं, उस वक्त भी हमारा वर्तमान हमारे साथ रहता है, पलक झपकने के साथ वह भूत तो हो जाता है, पर भविष्य पर कुछ भी फोकस नहीं होता। भविष्य तो भविष्य ही रह जाता है। पहुंच से दूर, पकड़ से बाहर।

भविष्य का बड़ा घनचक्कर है। कल ये करूंगा, कल वो करूंगा। और कल कभी आता है? आता तो आज है, गाता है, चला जाता है। और हम कल की मुलाकातों के ख्यालातों में ही रह जाते हैं। रह जाते हैं कि नहीं? भविष्य एक सपना है, एक कल्पना है। सपनों में जीने वाला आदमी, कल्पनाओं में समय व्यतीत करने वाला आदमी यानी भविष्य संवारने के चक्कर में फंसा आदमी, चाहे वह रोगी हो, योगी हो, भोगी हो, कदम दर कदम समझौता दर समझौता ही तो करता चलता है। कोई भी समझदार व्यक्ति यह कह सकता है, जिसे कदम दर कदम समझौता दर समझौता करना पड़े, उसका चाहे सबकुछ ठीक हो जाय, भविष्य तो कतई ठीक नहीं हो सकता। हो सकता है क्या? तो क्या करें, कैसे समझें भविष्य की उलझन को? भविष्य का घनचक्कर व्यक्तित्व विकास के मार्ग को कैसे प्रभावित करता है, आइए इस पर विचार करें।

एक कहावत सुनी होगी आपने। रोपा पेड़ बबूल का, आम कहां से आये। मतलब? भविष्य जो है, वह वर्तमान का बिल्कुल उचित परिणाम भर है। और कुछ नहीं है। यानी जब आप बबूल का पौधा लगाएंगे तो उसमें से आने वाले दिनों में आम के फल नहीं मिल सकते, नहीं मिलेंगे, नहीं मिलते हैं। आम का फल चाहिए तो आम के पौधे ही लगाने होंगे। आपने किसी को गाली दी तो आपका भविष्य आपको आपकी पिटाई का न्योता दे रहा है, इसे गंभीरता से समझने की जरूरत है। आपने जहर पीया तो आपका भविष्य आपकी मौत को आमंत्रित कर चुका है। आपने परीक्षा में सभी प्रश्न हल किए तो आपका भविष्य आपको पहले स्थान पर स्थापित करने वाला है। तो यह तय है कि आप कल परीक्षा में पास हों, कुछ सुपरिणाम आपके हिस्से में आए, इसके लिए जरूरी है कि आप भविष्य नहीं, वर्तमान और वर्तमान की हरकतों पर ध्यान दें।

भविष्य को लेकर जो शीर्षक बनाया गया है, उसके जेरेसाया कुछ अलहदा, कुछ महत्वपूर्ण बातें कहना चाहता हूं। यह पूरी चर्चा बस उस एक शार्षक को परिभाषित करने के लिए ही है। व्यक्तित्व विकास के लिए सतर्क व्यक्ति को इसे गंभीरता से समझने और उस पर विचार करने की जरूरत है। अमल तो विचार के साथ ही शुरू हो जाएगा, इसकी गारंटी है। मैं कहना यह चाहता हूं कि वर्तमान का उचित परिणाम भर भले भविष्य है, पर यह तब भी है जब न वर्तमान है और यह तब भी है जब न भूत है। नहीं समझे? आगे पढ़िए, यदि भविष्य का वजूद है तो उसका भूत और उसका वर्तमान एक अलग प्रकार की ही चीज है। क्यों? क्योंकि भविष्य कभी बर्बाद नहीं होता, कभी चौपट नहीं होता। हो ही नहीं सकता। बल्कि, सब कुछ चौपट हो जाय तो भी जो एकमात्र चीज बची रहती है, वह भविष्य ही है।

आज आप लुट गए, बर्बाद हो गए, आपकी बीवी किसी प्रेमी के साथ भाग गई, बच्चा खो गया, नौकरी चली गई, फेल कर गए, संपत्ति पर किसी ने कब्जा कर लिया, आपके पास कुछ नहीं बचा, आप चिल्ला रहे हैं, कराह रहे हैं, तड़प रहे हैं, आपकी आंखों के आगे अंधेरा छाया है, रास्ता नहीं सूझ रहा, वैसी स्थिति में भी मैं आपको दिलासा दिलाता हूं कि संभलिए, इसलिए कि आपका भविष्य बचा हुआ है। भविष्य यानी कल।

जी हां, चेतिए, आपका भविष्य बचा हुआ है। कल आएगा और आपके लिए भी कल आएगा। वह आपका भविष्य है। आप उसे फिर से संवार सकते हैं, क्योंकि भविष्य बचा हुआ है और अभी उसे आना है। जो नहीं बचा रहने वाला, संवारा तो उसे ही जाता है। तो जब भविष्य ही बचा रहता है तो फिर काहे की भविष्य की चिंता। चिंता तो उसकी की जाती है, जो बचा नहीं रहने वाला। भविष्य तो आखिर तक बचा रहने वाला है तो काहे की चिंता, काहे की फिक्र? काहे का डर, काहे की घबराहट, काहे की भाग-दौड़, काहे की हड़बड़ी-जल्दबाजी , काहे के लिए नैतिक-अनैतिक करने की मजबूरी? काहे की? काहे की??

फिलहाल इतना ही। भविष्य को लेकर बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ है, उससे कुछ और बातें मन में आ रही हैं, व्यक्तित्व विकास के प्रति सतर्क व्यक्ति के लिए शायद वह किसी काम आ जाय। इंतजार कीजिए अगली पोस्ट का।

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