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फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की….

गोल से पहले
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संदर्भ भविष्य को संवारने का है, शुरुआत करता हूं एक शेर से। मुलाहिजा फरमाइए। शेर है – फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की। जब तक आप इस शेर की मस्ती को जज्ब करें, तब तक इसी के जेरेसाया मैं अपनी दो बात आपसे कह लूं। आप देखें कि मतलब कितना कारगर निकलता है।

इस शेर को पढ़ने से आपको लग सकता है कि यह तो जिद की बात है और जिद किसी बात में अच्छी नहीं होती। मगर नहीं। यदि आप भविष्य की चिंताओं में मशगूल हैं और इसे संवारने के प्रति गंभीर हैं तो यह शेर आपके लिए रामबाण औषद्यि की तरह काम आने वाला है। धैर्य के साथ मेरी बातों को पढ़ते जाइए।

आम तौर पर होता क्या है? आदमी एस्केपिंग हो जाता है। चंचल मन, क्या करे। कभी इस डाल पर, कभी उस डाल पर। कभी हां, कभी ना। कभी बीवी, कभी साली, कभी कोई और। इस शेर का लब्बोलुआब आपसे थोड़ा टिकने, थोड़ा रुकने की अपील करता है। यह एकाग्रता का भी आपसे आह्वान करता है। यह शेर आपसे कहता है कि स्थितियां – परिस्थितियां आपको उद्वेलित करेंगी, आंदोलित करेंगी, उदास बनाएंगी, निराश करेंगी, पर आप तो ठान ही लीजिए कि नहीं, हम नहीं घबराएंगे, हम नहीं भागेंगे, हम रुकेंगे, देखेंगे, समझेंगे, समझने के बाद ही कोई कदम उठाएंगे।

आम तौर पर होता क्या है? दृढ़ से दृढ़ इच्छाशक्ति रखने वाला व्यक्ति भी मुकाम तक पहुंचता-पहुंचता भटक जाता है। एक विचार का मुकम्मल संपादन हुआ नहीं कि दूसरे विचारों से घिर जाता है। दूसरे विचारों पर कुछ कदम चला नहीं कि तीसरे विचार लुभाने लगते हैं। ऐसे में समझदारी के कुछ ही वर्षों में आदमी सैंडविच बनकर रह जाता है। भविष्य संवारने की चिंताएं भले उसके साथ हर कदम, हर सांस से कदमताल करती हों, पर वह पूरा जीवन भटकता रहता है, भटकता रहता है। जब वह बूढ़ा हो जाता है, उसकी इंद्रियां जवाब देने लगती हैं, जवाब दे जाती हैं तो वह अफसोस करने के सिवा कुछ भी नहीं कर पाता। कोई चेतना आई भी तो अब वह क्या कर लेगा?

और ऐसा होता क्यों है? ऐसा इसलिए होता है कि आदमी बातें तो बड़ी-बड़ी करता है, पर जब कभी चुनौतियां उसके सामने आईं, तभी वह घबरा जाता है। चुनौतियों को स्वीकारने का तो वह ख्याल भी नहीं कर पाता। जबकि चुनौतियां आती ही हैं भविष्य संवारने के लिए। जिसने चुनौतियां नहीं स्वीकारीं, उसका भविष्य क्या खाक संवरेगा? यह शेर आपके सामने बेहतर भविष्य लेकर आई चुनौतियों को स्वीकारने का भी आपसे आग्रह कर रहा है।

और कोई यह चाहता हो कि उसका भविष्य संवरे तो उसे भविष्य के खतरे से भी पूर्व में ही सावधान रहने की जरूरत होती है। भोज के वक्त कोंहड़ा रोपने की कहावत तो आपने सुनी होगी। इसका मतलब जब बारिश शुरू हो जाए तब जलावन बचाने की चिंता करने से कुछ भी हाथ नहीं आता। इसकी तैयारी पहले से करने होती है। यह शेर आपको भविष्य में गिरने वाली बिजली से भी सावधान रहने का इशारा कर रहा है।

तो व्यक्तित्व विकास के प्रति सतर्क व्यक्ति जो अपना भविष्य भी संवारना चाहते हैं, उनसे मेरी एक अपील यही है कि आप कम से कम इस शेर को दिन में एक बार जरूर गुनगुनाइए। आइए एक बार फिर इस शेर को पढ़े- फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की। फिलहाल इतना ही। भविष्य संवारने के लिए टिप्स खोजती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा।

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