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चाहने वालों का आग्रह था, थोड़ा जल्दी-जल्दी लिखूं, कम समय अंतराल पर लिखूं। पर, देख लीजिए, इच्छा के बाद भी विलंब हुआ। क्यों हुआ, इस पर विचार करने बैठा तो जो तीन चीजें छनकर आईं, उससे भविष्य को संवारने का ही सूत्र मिलता है। ये तीन चीजें हैं लत, संगत और पंगत। जी हां, इन तीन चीजों से भविष्य और भविष्य की कार्ययोजना बुरी तरह प्रभावित होती हैं, कमोबेश इसे सभी जानते हैं, पर कितनी बुरी तरह प्रभावित होती हैं, आइए मैं भी बताने की कोशिश करता हूं।
सबसे पहले लत। बुरी लतें भविष्य खराब कर देती हैं, यह तो सभी मानते हैं, पर कभी-कभी अच्छी लतें भी भविष्य चौपट कर सकती हैं, यह मैं कहना चाहता हूं। मान लेते हैं, एक व्यक्ति पढ़ाकू है। खूब पढ़ता है। इस पढ़ने की वजह से उसके पास ज्ञान का भंडार है। अब देखिए, इस भंडार से वह किसी बेहतर औऱ कमाऊ जगह पर पहुंच गया, पर लत वहां भी उसका पीछा नहीं छोड़ रही। अब वह दफ्तर में किताबें लिए पहुंच रहा है। पूरा दफ्तर परेशान। वह मानने को तैयार नहीं। बास का आखिरी अल्टीमेटम और उसमें नाराजगी, आक्रोश का भंडार। इसके पहले कि बास कोई फैसला ले, उसने खुद फैसला ले लिया। तो मेरा मानना है कि अपनी आदतों पर नजर रखिए और उसके किसी हिस्से में किसी चीज की लत का पता चले तो तत्काल उसे निकालिए, भविष्य संवरेगा।
दूसरी बात संगत। यानी संगति। यह कौन नहीं जानता – संगत से गुन होत हैं संगत से गुन जात…। एक गांव के एक पंडित जी का किस्सा सुनाऊं। पंडित जी पूजा-पाठ, शादी-विवाह सब कराते हैं। बड़ा नाम था, बड़ी इज्जत थी। गांव में ही एक अपराधी भी था। वे उसके यहां भी पूजा-पाठ कराते थे। वहां से उन्हें चढ़ावा कुछ ज्यादा मिलने लगा, नतीजा उनका ज्यादातर समय उसी अपराधी के दरवाजे पर गुजरने लगा। अब अपराधी जेल गया तो वे यदा-कदा जेल गेट पर भी दिखने लगे। पांच-सात वर्षों के बाद का आलम यह है कि अगल-बगल के गांवों के लोग उन्हें पंडित कम अपराधी का माऊथपीस ज्यादा मानने लगे हैं। पंडित जी परेशान हैं। पुलिस वाले भी यदा-कदा उन्हें खोजते नजर आते हैं और वे पुलिस से बचते रहते हैं। परेशान पंडित जी एक दिन मुझसे मुक्ति का मार्ग पूछ रहे थे, मैं सिर्फ इतना ही कह पाया – सब संगत का असर है पंडित जी और पंडित जी लाजवाब।
तीसरी बात पंगत। पंगत का मतलब होता है भोजन, खाना, ब्रेकफास्ट, डिनर, लंच। फौज के कंटीनों में कहीं पढ़ा था- इट फार हेल्थ नाट फार टेस्ट। जब पढ़ा था, तब बहुत देर तक मजाक उड़ाता रहा था। मगर, कितना सही था वह वाक्य! मेरे यहां एक देहाती कहावत कहते हैं – जैसा अन्न खाओगे, वैसा ही बनोगे। इसे ऐसे बताऊं। पंगत दो कारणों से लगानी पड़ती है। पहला, जीवन जीने के लिए। भूख और उपवास के बाद बुद्ध ने भी स्वीकार किया कि यह प्रकृति के विरुद्ध है। आपको देह नष्ट करने का अधिकार नहीं है। सो, भोजन जरूरी है। दूसरा, हम कभी भी और कुछ भी नहीं खा सकते। स्वास्थ्य बिगड़ेगा तो निश्चित रूप से भविष्य के कार्यक्रम भी बिगड़ेंगे। फिलहाल इतना ही।
व्यक्तित्व विकास को सतर्क व्यक्ति के लिए भविष्य संवारने वाले टिप्स खोजती चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा। अगली पोस्ट में पढ़िए – सब जज्बे की बात।
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