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सब जज्बे की बात

गोल से पहले
गोल से पहले
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तुफैल ए सिद्दीकी साहब की टिप्पणी के साथ इस आलेख की शुरूआत की इजाजत चाहूंगा। लत, संगत, पंगत पर आपकी टिप्पणी है – कौशल जी, हार्दिक अभिवादन, इस पूरे मंच पर आप अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जो ऐसे पोस्ट लिखते है जो केवल मनुष्य के भले की बात करते है। आपके पोस्ट जीवंत होते है, उदाहरण वास्तविक होते है. एक-एक शब्द अनूठा मायने लिए होता है. टू द प्वाइंट आपकी बात होती है. किसी के ऊपर लांछन लगाना, टीका-टिप्पणी करना, आलोचना करना आदि से आपके पोस्ट कोसों दूर होते है. औरों का तो पता नहीं, लेकिन मुझे आपकी ये शैली बेहद आदर्श लगती है।

सिद्दीकी साहब, आपकी टिप्पणी से मेरे हौसले बढ़े और मैं उन आलेखों में फिर से झांकने को मजबूर हुआ, जिसे मैंने अब तक लिखे। व्यक्तित्व विकास पर चल रही सीरीज के आलेख मेरे लिए भी एक आश्चर्य की ही तरह हैं कि मैंने एक ख्याल पर्सनालिटी डेवलपमेंट पर इतने लेख लिख दिए और इसी सीरीज का अगला आलेख लिखने जा रहा हूं! क्या लिखूं यह सवाल नहीं है, न ही यह सवाल है कि कैसे लिखूं? सवाल यह है कि कुछ और अच्छा लिखूं, उन सभी से अच्छा, जो अब तक लिख चुका हूं। आपकी टिप्पणी मेरे लिए यह चुनौती भी बना रही है। इसके पहले कि मैं बात आगे बढ़ाऊं, यह जरूरी है कि इन आलेखों को पढ़ने वालों और इन्हें लिखने के लिए प्रेरित करने वाले सभी हमकदम, हमख्यालों को सिद्दीकी साहब के बहाने बधाई दे लूं। आप सभी मेरी शुभकामनाएं कबूल करें।

व्यक्तित्व विकास पर कुछ अच्छा लिखने के लिए सोचों की जेरेसाया जो एक शब्द मेरे जेहन में गूंजा, वह था – जज्बा। मुझे लगता है कि व्यक्तित्व विकास के प्रति सतर्क व्यक्ति जो भविष्य संवारने के लिए भी संवेदनशील हों, उनके लिए इस शब्द का बड़ा महत्व है। आपका जज्बा आपको आपके हर कदम पर ऊंचा उठाता है, नीचे गिराता है। चाहे पूज्य बापू महात्मा गांधी हों, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू हों, डा. राजेन्द्र प्रसाद हों या फिर इंदिरा, पटेल जेपी ही हों। टाटा, बिड़ला की ही बात कर लें। उनकी मिसालें इसलिए आज धरोहर हैं कि वे सभी जज्बा रखने वाले व्यक्ति थे, अपने जज्बों के प्रति निष्ठा भाव से समर्पित रहने वाले व्यक्ति थे।

मेरे एक साथी हैं। उन्हें एक महत्वपूर्ण पद पर विराजमान कर दिया गया। कोई भी पद महत्वपूर्ण इसलिए ही होता है कि वहां का काम महत्वपूर्ण होता है। हां, उस महत्वपूर्ण पद पर विराजमान व्यक्ति के सामने कुछ ऐशपरस्ती के भी मौके भी जरूर होते हैं। मगर, ऐशपरस्ती के मौके पद की महत्ता को बढ़ाने के लिए होते हैं, न कि उसमें डूबकर पद की महत्ता को भूल जाने के लिए। जज्बे का यहीं महत्वपूर्ण रोल हो जाता है। काम के प्रति आपका जज्बा बना रहा तो पद पर आपके बने रहने की संभावना बनी रहेगी और इसी के साथ बनी रहेगी उस पद से जुड़ी रहने वाली ऐशपरस्ती।

अब साथी ऐशपरस्ती में डूब गए। काम का दिन-ब-दिन कबाड़ा निकलने लगा। एक महीना बीता, दो महीना बीता। तीसरे महीने तो जिन्होंने उन्हें उस कुर्सी पर बिठाया था, उन्होंने ही टिप्पणी शुरू कर दी। साथी टिप्पणी झेल रहे थे और इधर-उधर प्रति टिप्पणी करते चल रहे थे। अब एक समय ऐसा आया कि बॉस बदल गया। साथी की ऐशपरस्ती चलती रही। जब उनसे काम खोजा जाने लगा तो वे घबरा गए। उनका घबराना यह बताता था कि काम के प्रति उनका जज्बा खत्म हो चुका था। नतीजा, उन्हें पद से भी पहले ऐशपरस्ती खोनी पड़ी। बाद में तो वे पद बचाने के लिए मशक्कत कर रहे थे। यह मशक्कत संस्थान बदलने के बाद ही पूरी हुई। एक ख्वाब जो ख्वाबों में ऊंचा मुकाम चढ़ गया था, अंजाम तक पहुंचने से ही पहले ध्वस्त हो गया। कारण रहा जज्बे की कमी।

तो सफलता के लिए सिर्फ काम मिलना या काम में लगना ही महत्वपूर्ण नहीं होता। महत्वपूर्ण होता है कि आप उसे किस जज्बे के साथ अंजाम तक पहुंचाते हैं। आपका जज्बा ही आपको सफलता के शिखर पर पहुंचा सकता है या वही आपको एक विफल व्यक्ति के रूप में भी स्थापित कर देता है। सब जज्बे की बात होती है।

फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास के प्रति सतर्क व्यक्ति के लिए भविष्य संवारने के टिप्स तलाशती रपटों का सिलसिला अभी जारी रहेगा। धन्यवाद। अगली पोस्ट में पढ़िए – बतोलाबाजी नहीं, नुकसान हो जाएगा।

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