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शुरू कीजिए काउंटडाउन

गोल से पहले
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नया साल शुरू होता है, नया महीना शुरू होता है। फिर क्या होता है? एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन, पांच दिन गुजर चुके। अब कल छठा दिन होगा, परसों सातवां, तरसों आठवां, फिर नौवां, दसवां और एक दिन निश्चित ही कोई दिन ऐसा भी होगा, जो साल का या महीने का अंतिम दिन होगा। फिर शुरू होगा एक और नया साल एक और नया महीना। होता क्या है? शुरुआत से ही शुरू हो जाता है आखिरी दिन तक पहुंचने का सफर। सिलसिला चलता आ रहा है। सदियों से। काउंटडाउन, काउंटडाउन और सिर्फ काउंटडाउन। तिथियां आगे बढ़ती हैं, पर चलता है काउंटडाउन। ऐसे में एक आम आदमी क्या करे? खासकर व्यक्तित्व विकास के लिए क्या किया जाए? है न यह सवाल? एक बड़ा सवाल? तो आइए, जानते हैं कुछ नायाब चीज, लेते हैं कुछ नए संकल्प।

जी हां, जिंदगी का भी काउंटडाउन शुरू कर दीजिए। यह अटपटा लग सकता है, बकवास लग सकता है, पागल का प्रलाप लग सकता है, मगर है नहीं। गौर कीजिएगा तो लगेगा बात सच्ची है, काम की है। और यह मैं यूं ही नहीं कह रहा। आप सीधी गिनती गिनते हैं। इसका कोई अंत है क्या? गिनते जाइए, गिनते जाइए, गिनते जाइए। जहां खत्म करेंगे, वहां से भी एक, दो, तीन, चार, पांच.. बढ़ने की गुंजाइश बनी रहेगी। बनी रहेगी न? और यकीन मानिए, आप खत्म हो जाएंगे, गिनती चलती रहेगी, चलती रहेगी। गिनती पूरी नहीं होने वाली, इसे मान लीजिए। मान लेने में ही भलाई है। ध्यान रखिए, यहां गिनती गिनना बंद करने की सलाह नहीं दी जा रही है। न, कतई नहीं। गिनती गिनना बंद करने का मतलब जीवन खत्म, सांसें बंद, बातें खत्म। पर, अभी तो सांसें चल रही हैं। जीवन चल रहा है। बातें हो रही हैं। सलाह यह है कि काउंट कीजिए, पर अप नहीं डाउन। जी हां, काउंटडाउन। सइया निनानवे, अनठानवे सनतावने ..।

मैं बताऊं, आप मान लेंगे। आपके जीवन की घडि़यां निश्चित हैं। जिस दिन बच्चा जन्म लेता है, उस दिन उसकी उम्र सबसे ज्यादा होती है। आप पचास के हो गए, इसका मतलब? इसका मतलब आपके पास जीवन की घडि़यां सिकुड़ रही हैं। आप खत्म हो रहे हैं। और एक खत्म होता आदमी क्या करता है? एक बड़ा सवाल। व्यक्तित्व में शामिल करने वाला। इसका जवाब आपको चमत्कारिक बना देगा, यदि आपने इस पर गंभीरता से सोच लिया। कभी सोचा आपने कि खत्म होता आदमी क्या करता है? खत्म होता आदमी कभी लूट की बात नहीं करता। कभी चोरी की बात नहीं करता। कभी हिंसा की बात नहीं करता। कभी किसी को एक तिनके से भी जख्म पहुंचाने की बात नहीं करता। वह माफी मांगता चलता है। वह परोपकार की बात सोचता है। वह ईश्वर का भजन करने लगता है। वह आशीर्वाद देने लगता है। वह अपने गुनाहों का प्रायश्चित करने लगता है।

है न चमत्कार की बात? यह सबकुछ मरता आदमी करता है। उफ, मरता आदमी! जिंदा आदमी क्या करता है? सोचिएगा तो शर्म आ जाएगी। जो जिंदा आदमी को करना चाहिए, वह मरता आदमी करता है तो यह शर्म की ही बात है। लेकिन, मैं कहता हूं, जिंदा आदमी यही कर सकता है। क्यों? क्योंकि वह काउंटअप करता है। वह आगे की गिनती गिनता है, जिसका कोई अंत नहीं है। अंतहीन सिलसिले में फंसा आदमी दुख को ही प्राप्त हो सकता है, भय को ही प्राप्त हो सकता है। दुख और भय से निपटारा पाना हो तो करना होगा जिंदगी का काउंटडाउन। एक बार काउंटडाउन का मिजाज बना तो समझिए मिला उपाय, संवरा भविष्य, संभला व्यक्तित्व। फिलहाल इतना ही। व्यक्तित्व विकास और भविष्य संवारने के टिप्स तलाशती काउंटडाउन पर चर्चाओं का सिलसिला अभी जारी रहेगा। अगली पोस्ट में पढ़िए – काउंटडाउन का मतलब टार्गेट पर नजर।

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