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रातोरात हो सकता है चमत्कार

गोल से पहले
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चमत्कार का नाम तो आपने सुना होगा, चमत्कार को कई बार नमस्कार भी किया होगा। क्या आप नहीं चाहते कि आपके जीवन में कुछ चमत्कार हो? कोई कहे कि आपके जीवन में भी चमत्कार हो सकता है और बड़ी आसानी से हो सकता है, ठीक ऐसे जैसे आप पान की दुकान पर गए और दो-चार रुपये देकर पान खा लिया, मिठाई खाने की चाही और महज दस-बीस खर्च कर दो-चार रसगुल्ले खा लिए तो शायद ही भरोसा हो। मैं कहना चाहता हूं कि इससे भी आसान तरीके से (आसान इसलिए कि इस प्रक्रिया में कोई पैसा खर्च नहीं होने वाला) आपके जीवन में चमत्कार हो सकता है, यदि आप चाहें।

अभी पीछे की दो पोस्टों में आपने काउंटडाउन की तासिर जानी। इससे जस्ट आगे की बात बताना चाहता हूं। जो कहने जा रहा हूं, उसे हूबहू सही मान लेने का मेरा कोई आग्रह नहीं है। हां, विचार करने की गुजारिश जरूर है। दरअसल, इंसानियत का सलीका कुछ वादों और उन वादों को पूरा करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों से ही रफ्तार पकड़ता है और मुकाम पाता है। इस राह में आदमी कुछ सही, कुछ गलत भी कर गुजरता है। पापी पेट का सवाल है, कहते आपने बहुत लोगों को सुना होगा। और लोग मान भी लेते हैं, माफ भी कर देते हैं। मगर, पापी पेट के लिए पाप करने का काम चलता रहता है, चलता रहता है। इसे रोका जा सकता है। तत्काल, तत्क्षण, बिना किसी पुलिस, बिना किसी कानून के।

अभी पिछले दिनों मैं सोच रहा था। कोई इंसान इंसानियत कायम रखने के लिए क्या करे? क्या करे?? दिमाग ने जो जवाब उगला, वह आपके पेशेनजर है, मुलाहिजा फरमाइए। विचार समझ में आ गया तो गारंटी है, चमत्कार जैसा ही होगा। इंसान कुछ करने के लिए हर रात खुद से कुछ संकल्पों पर विचार करे। उन संकल्पों को लागू करने की जहमत में पड़े बिना यह सोचे कि यदि संकल्प लेना ही पड़े तो वह किन-किन चीजों को अपने आचरण में समाहित करने के लिए संकल्प लेगा। मेरा मानना है कि व्यक्तित्व में बस इस एक कार्रवाई से चमत्कारिक चमक पैदा हो सकती है।

होगा क्या? यदि इंसानियत के लिए कुछ संकल्पों की दिशा में दिमाग दौड़ा तो लगने लगेगा कि आपको तंबाकू का सेवन नहीं करना चाहिए। सिगरेट-शराब से तौबा कर लेनी चाहिए। अब तक परोपकार किया नहीं, कल से कुछ इस ओर भी ध्यान दिया जाए। बच्चे को बेकार में डांट दिया, उससे माफी मांग लेनी चाहिए। बीवी के सिर में दर्द है, तीन दिनों से दवा के लिए कह रही है, कल लेता आऊं। फलां काम लटका है, कल निपटा लूं। फलां के चक्कर में जीवन बर्बाद हो रहा है, उससे छुटकारा पा लूं। फलां के साथ रहने से छवि खराब हो रही है, कल से उसके साथ नहीं दिखना है। अब तक भविष्य के लिए कुछ पैसे जमा नहीं किए, कल से कुछ बचत पर ध्यान देना है।

ये छोटी-छोटी बातें हैं, पर इसके प्रति आपका केयरलेसनेस आपके व्यक्तित्व को हल्का करता है, जबकि इसके प्रति जब आप केयरफुल होते हैं तो आपका व्यक्तित्व निखार पाता है। निखार पाता है कि नहीं? तो रातोरात आपका पूरा व्यक्तित्व केयरफुल हो जाए, यह चमत्कार जैसा है कि नहीं? है न? और यदि है तो इस चमत्कार को हासिल करने के लिए आपको करना क्या पड़ा? मेरी समझ से कुछ भी नहीं। फिलहाल इतना ही।

व्यक्तित्व विकास को लेकर चर्चाओं का सिलसिला जारी रहेगा। पर, अगली कुछ पोस्टों में पढ़िए मेरी कुछ कविताएं, जो कभी सिर्फ और सिर्फ अपने लिए लिखी गईं। बाद में मित्रों ने उसे पढ़ा, सराहा और हौसलाअफजाई की तो उसे सार्वजनिक करने की हिम्मत कर रहा हूं। सिलसिला अगली पोस्ट से शुरू होगा।

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