Menu
blogid : 129 postid : 136

मुजस्सम हुस्न में बह गया तबस्सुम

गोल से पहले
गोल से पहले
  • 72 Posts
  • 304 Comments

अरे क्या गोया तबस्सुम, अरे क्या खोया तबस्सुम,
मुजस्सम हुस्न में बह गया तबस्सुम।
दरो-दीवार हैं न खिड़कियां मेरे घर में,
ताक लो, झांक लो, सब देख लो, ऐ मेरी तबस्सुम।

तुम्हारी नाक के नीचे गिला है, शिकवा है,
तुम्हारी आंख के नीचे कजा है, फजा है,
हमीं हम हैं, खुदी की याद में खोये हुए,
बर्बादे इश्क-मुश्क का, यही मंजर तबस्सुम।

सुना था छीन लेती है मोहब्बत रूह जिस्म से,
सुना था दोस्तों को भी बना देती है ये दुश्मन,
यहां तो रूह जिस्म है बना, दुश्मन बने हैं दोस्त,
यहां क्या ताल, हाल, ढूंढ़ लो, आओ तबस्सुम।

मरीज जिद का शराबी, हकीम नीम जैसा है,
सलाहियत पे चला है, कसाइयत को झेला है,
जुनूने गम का मारा है, सुकूने हम में जीता है,
ये चाल, माल मयस्सर, बहुत ही दूर तबस्सुम।

मुजस्सम हुस्न में बह गया तबस्सुम।
मुजस्सम हुस्न में बह गया तबस्सुम।

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh