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भूल से भी एक कंकड़ मत उछालना यारो

गोल से पहले
गोल से पहले
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भूल से भी एक कंकड़ मत उछालना यारो,
हजारों पत्थर आकर तेरे सर पड़ेंगे।

ऐसा कोई घर नहीं, जिसमें तुम छुप सको,
पनाह देने वाले ही तुमसे लड़ पड़ेंगे।
नाजो अदा से जिन्होंने तुम्हें पाला था,
मौका-ए-वारदात पर वे मुकर पड़ेंगे।

तंग कश्ती है, तंग बस्ती है और तंग मस्ती है,
बच्चों को मत बताना, वे डर पड़ेंगे।
बच्चों को ये बताना कि खेल ही है दुनिया,
वरना नादानगी में वे कुछ कर पड़ेंगे।

लोग कहते हैं, कौशल, तुम बड़े मुंहफट हो,
मेरी मोहब्बत के अंजाम पे लोग मर पड़ेंगे।
मैंने जाना है चेहरे पे लगे चेहरों की हकीकत,
कह दूं, तो बिना आंधी कई मकां उजड़ पड़ेंगे।

भूल से भी एक कंकड़ मत उछालना यारो,
हजारों पत्थर आकर तेरे सर पड़ेंगे।

( नोट – ये पंक्तियां दुष्यंत साहब की रचना – एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो – से प्रेरणा पाकर लिखी गयीं। विचारार्थ प्रकाशित कर रहा हूं। आपकी कोई भी टिप्पणी – सकारात्मक या नकारात्मक – शिरोधार्य होगी। – कौशल)

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